Guru Valmiki


01. शूरजानो को अपने मुख से अपनी प्रशंसा करना कभी नहीं भाता । वे वाणी के द्वारा प्रदर्शन न करके शुभकर कर्म ही करते है ।
02. जिनके हृदय में उत्साह होता है , वे पुरुष कठिन कार्य आ पड़ने पर भी हिम्मत नहीं हारते ।
03. पुरुषार्थ भाग्य का निर्माता होता है ।
04. पिता की सेवा और उनकी आज्ञा का पालन जैसा धर्म दूसरा कोई भी नहीं है ।
05. वाणी से भी बाणों की वर्षा होती हैं । जिस पर इसकी बौछारें पड़ती हैं , वह दिन-रात दुःखी रहता हैं ।
06. हितकर किंतु अप्रिय वचन को कहने और सुनने वाले दोनों दुर्लभ हैं ।
07. संसार में मानव के लिए क्षमा एक अलंकार है ।
08. चरित्र का ज्ञान हुए बिना कुलीन व अकुलीन, वीर व दंभी, पवित्र या अपवित्र नहीं होता ।
09. इच्छा पर विचार का शासन रहे ।
10. जैसे पके फलों को गिरने के अतिरिक्त कोई भय नहीं, उसी प्रकार जिसने ज्ञान लिया है, उस मनुष्य को मृत्यु के अतिरिक्त कोई भय नहीं । मृत्यु अटल है, अतः उससे भी भय नहीं | असली भय तो मृत्युपूर्व किये कर्मो का है ।
11. तुम्हें मन में विषाद नहीं करना चाहिए, क्योंकि विषाद बहुत बड़ा दोष है । वह उसी प्रकार मनुष्य का नाश कर देता है, जिस प्रकार क्रुद्ध सर्प पास आए बालक को डस लेता है ।
12. अहंकार सोने के हार को भी मिट्टी का बना देता है ।
13. तृष्णा उस अग्नि को उत्पन्न कर देती है जिससे संतोष रूपी गुण जल जाता है ।
14. जो पुरुष निरुत्साह, दीन और शोकाकुल रहता है, उसके सब काम बिगड़ जाते हैं और वह अनेक विपत्तियों में फंस जाता है ।
15. ईंधन से जैसे अग्नि बढ़ती है, ऐसे ही सोचने से चिंता बढ़ती है । न सोचने से चिंता वैसे ही नष्ट हो जाती है जैसे ईंधन के बिना अग्नि ।
16. दुःख और विपदा ऐसे मेहमान हैं, जो बिना निमंत्रण के ही आते हैं ।
17. ठीक समय पर किया हुआ थोड़ा सा उपकार भी बहुत बड़ा होता है और समय बीतने पर किया हुआ महान उपकार भी व्यर्थ हो जाता है ।
18. जो कुपथ पर पग रखते हैं, उनमें तनिक भी बुद्धिबल नहीं रह जाता ।
19. सदा सुख मिले, यह दुर्लभ है ।
20. अपने भीतर शांति प्राप्त होने पर सारा संसार भी शांत दिखाई देने लग जाता है ।
21. अगर सेवक सुख चाहे, भिखारी मान चाहे, और व्यसनी धन चाहे तो समझ लो यह लोग आकाश से दूध दुहना चाहते हैं 
22. किसी के साथ भी अत्यंत लगाव न रखो और किसी को भी पूर्ण रूप से उपेक्षित मत करो  इसमें मध्य मार्ग सर्वश्रेष्ठ होता हैं 
23. जो माता-पिता, ब्राह्मण और आचार्य का अपमान करता है, वह यमराज के पाश में पड़ कर उस पाप का फल भोगता है 
24. जो व्यक्ति साधू-संगति रुपी शीतल निर्मल गंगा में स्नान करता है, उसे फिर किसी तीर्थ, तप, दान और यज्ञ व योग आदि की क्या आवश्यकता है 
25. नारी के लिए उसका पति सर्वश्रेष्ठ आभूषण है  उससे पृथक रहकर वह सुन्दर होते हुए और आभूषणों से सज्जित होकर भी शोभा नहीं पाती 
26. बहुत से व्यक्ति यदि महान आकांक्षाओं से आक्रांत न होते तो छोटी बातों में अवश्य सफल हो जाते 
27. भाग्य कुछ भी नहीं करता, यह तो केवल कल्पना का भ्रम है और सांत्वना के उद्देश्य से गढ़ा गया शब्द है 
28. सेवा हेतु अर्पण किया गया बल अमर है 
29. श्रेष्ठ पुरुष सफल कहे जाने वाले पापियों के पाप का सदैव परित्याग करते हैं 
30. किसी को भी अनुपस्थित की निंदा का हक नहीं